Drishyam 2 Review: बॉलीवुड के लिए कमाई के हिसाब से यह साल भी पिछले दो साल की तरह उतना बेहतरीन नहीं रहा है. एक दो बड़ी फिल्मों को अगर छोड़ दिया जाए, तो ज्यादातर फिल्में बड़े बजट, बड़ी बड़ी स्टारकास्ट होने के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर कोई खास कमाई नहीं कर पाई हैं.
लेकिन आपने सुना होगा की अंत भला, तो सब भला, इसलिए उम्मीद है की गुजरते इस साल में शायद दृश्यम 2 कोई कमाल कर दे. लेकिन उसके लिए आपके लिए ये जानना जरूरी है की क्रिटिक के मानकों और ओरिजनल मलायलम फिल्म की तुलना में अजय देवगन की दृश्यम 2 कैसी रही, ये जानने के लिए पढ़ें ये रिव्यू..
इंडस्ट्री में शायद ही किसी फिल्म के सीक्वल को लेकर फैंस के बीच इतना हाइप्ड क्रिएट हुआ हो. बाहुबली के बाद जो पागलपन बाहुबली 2 को लेकर था, ठीक वही दीवानगी दृश्यम के प्रति भी फैंस में दिखती है.
रिलीज के बाद हर साल 2 अक्टूबर को फिल्म को लेकर सिनेमा लवर्स के बीच मीम्स वायरल होते रहे हैं. शायद यही कारण है कि सात साल बाद सीक्वल लेकर लौट रही फिल्म की एडवांस बुकिंग भी तेजी से हो रही है.

क्या और कैसी है कहानी
गोवा में रहने वाले विजय सलगांवकर, उनकी फैमिली और 2 अक्टूबर को उनके साथ हुए हादसे से तो आप वाकिफ हैं. ‘दृश्यम 2’ सात साल बाद उसी स्टोरी को आगे बढ़ाती है. विजय का परिवार आज भी सहमा हुआ है और सोसायटी से कटऑफ है.
हां, विजय इस बीच केबल ऑपरेटर से एक थिएटर का मालिक बन चुका है. फिल्मों का शौकीन विजय अब फिल्म प्रोड्यूस करना चाहता है.
कहानी को लेकर उसकी मुलाकात एक जाने-माने डायरेक्टर (सौरभ शुक्ला) से होती है. हालांकि विजय अपनी लिखी फिल्म के क्लाइमैक्स से खुश नहीं है. जिसके ड्राफ्ट पर दोबारा काम कर रहा है. वहीं दूसरी ओर 2 अक्टूबर को हुए हादसे के बाद से उनका परिवार सदमे में है.
बड़ी बेटी अंजू (इशिता दत्ता) को जहां एंजायटी अटैक आते हैं, तो वहीं मां नंदनी सलगांवकर (श्रेया सरन) भी अक्सर पुलिस को देखकर चौंक जाती है.
गोवा में एसपी तरुण अहलावत (अक्षय खन्ना), जो मीरा(तब्बू) के दोस्त भी हैं, का तबादला हुआ है. अक्षय के आने के बाद केस रिवाइव होता है और पुलिस दोबारा लाश को खोजने में लग जाती है. इस बार पुलिस पूरी तैयारी के साथ विजय और उसके परिवार को पकड़ना चाहती है.
जहां उन्हें डेविड (सिद्धार्थ बोडके) के रूप में एक अहम सुराग मिलता है. दोबारा क्रिमिनल इनवेस्टिगेशन में फंसे इस परिवार के लिए क्या विजय हीरो साबित हो पाते हैं?
क्या पुलिस को बॉडी मिल पाती है? डेविड के पास क्या राज है? पुलिस और विजय की दिमागी जंग में आखिर कौन जीतता है? इन सब सवालों के जवाब के लिए थिएटर की ओर रूख करें.
जानिए डायरेक्शन के बारे में
निशिकांत कामत की मौत के बाद अभिषेक पाठक ने फिल्म के सीक्वल की कमान अपने हाथों में ली. दृश्यम की सुपरसक्सेस के बाद लॉकडाउन में खाली बैठे कई सिनेमालवर्स ने मलयालम वर्जन देखी है, तो जाहिर है डायरेक्टर पर प्रेशर जरूर रहा होगा.
यह कहना गलत नहीं होगा कि अभिषेक ने पूरी ईमानदारी से अपने काम को अंजाम तक पहुंचाया है. भले आपको क्लाइमैक्स पहले से पता हो लेकिन पूरी फिल्म के दौरान आपका इंट्रेस्ट बरकरार रहता है और जिन्हें नहीं पता, तो उनके लिए सोने पर सुहागा.
फिल्म देखने के दौरान ऐसे कई मोमेंट्स हैं, जिसमें आप ताली बजाने पर मजबूर होते हैं और कुछ आपको हैरान कर देते हैं. फर्स्ट हाफ के शुरुआत का 20 मिनट छोड़ दें, तो पूरी फिल्म आपको बांधे रखती है.
हालांकि मलयालम फिल्म में भी फर्स्ट हाफ को लंबा खींचा गया था. जबकि उसकी तुलना में यहां, मेकर्स ने स्मार्ट प्ले करते हुए उसे थोड़ा क्रिस्प रखा है.
इंटरवल तक आते-आते फिल्म की रफ्तार तेज पकड़ती है और अंत तक सस्पेंस बरकरार रखने में कामयाब होती है. कोर्ट रूम ड्रामा, परिवार पर हाथ उठाती पुलिस, 2 अक्टूबर वाले जोक्स जैसे सीक्वेंस देखकर आपके इमोशन में उतार-चढ़ाव आते हैं. थ्रिल और सस्पेंस से भरा आखिर का बीस मिनट बहुत ही दमदार गुजरता है.
तकनीकी रूप से क्या है स्कोर
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर इसकी जान है. जो हर सीक्वेंस पर थ्रिल बिल्ड-अप करने में फ्यूल का काम करता है. सिनेमैटोग्राफर सुधीर के चौधरी के कई खूबसूरत शॉट ने गोवा को एक अलग नजरिया दिया है.
हालांकि कुछ क्लोजअप शॉट्स के एंगल स्क्रीन पर थोड़े अजीब लगते हैं. फिल्म शुरूआत के 20 मिनट स्लो है, जिसे एडिटर संदीप फ्रांसिस थोड़ा और क्रिस्प कर सकते थे.
कैसी है एक्टिंग
अजय देवगन और तब्बू जैसे स्टार जब स्क्रीन पर एक साथ आते हैं, तो मैजिक क्रिएट होना लाजमी है. हालांकि प्रीक्वल की तुलना में यहां उनकी एक्टिंग उतना प्रभावित नहीं करती है.
अक्षय खन्ना की एंट्री फिल्म का दिलचस्प पहलू है. अक्षय कहीं से भी अपने किरदार में कमतर साबित नहीं होते हैं. श्रेया सरन ने अपना काम डिसेंट किया है. बेटियों के रूप में इशिता और मृणाल का किरदार के प्रति कॉन्फिडेंस स्क्रीन पर साफ झलकता है. इंस्पेक्टर गायटोंडे के रूप में कमलेश सावंत का काम बेहतरीन है.
सौरभ शुक्ला का इस फिल्म में अहम किरदार है, जहां मजबूती से वे अपनी मौजूदगी दर्ज करा जाते हैं. रजत कपूर को स्क्रीन स्पेस उतना नहीं मिला है, लेकिन उन्होंने अपना काम ईमानदारी से निभाया है. ओवरऑल परफॉर्मेंस के मामले में थोड़ी सी वीकर लगती है.
किसलिए देखें ये फिल्म
अगर आपने साउथ वर्जन भी देखा है, तो भी दावा है कि फिल्म देखकर आप निराश नहीं होंगे. फैमिली एंटरटेनमेंट इस फिल्म में भरपूर सस्पेंस और ड्रामा मिलेगा. सलगांवकर परिवार की दुनिया दोबारा सात साल बाद लौटी है, आप इसमें अपनी फैमिली संग प्रवेश कर इसे दोबारा एंजॉय कर सकते हैं.